सभी देवी-देवताओं के संग ब्रह्मा जी ने यहां डाली
थी आहुतियां, मनौतियां होती हैं पूरी
हिमाचल के ऊना की खुबसूरत शिवालिक
पहाड़ियों के बीचों बीच भगवान ब्रह्मा का
ब्रह्मा-आहुति मंदिर वो स्थान है, जहां भगवान
ब्रह्मा ने अपने सौ पौत्रों के उद्धार के लिए
आहुतियां डाली थी। कहते हैं यहां ब्रह्मा कुंड में
स्नान करके सच्चे दिल से भगवान ब्रह्मा से
मनौतियां मांगो तो जरूर पूरी होती हैं। विशेषकर
बैसाखी के दिन स्नान का विशेष महत्त्व है। कहते हैं
कि इस दिन ब्रह्मा जी की विशेष कृपा होती है ।
पूरे देश में भगवान ब्रह्मा के केवल दो ही मंदिर हैं, एक
राजस्थान के पुष्कर में और दूसरा हिमाचल के ऊना
में, ऊना की खुबसूरत शिवालिक की पहाड़ियों के
बीच भगवान ब्रह्मा की नगरी है, जिसे ब्रह्माहुति
के नाम से जाना जाता है । राजस्थान के पुष्कर के
बाद पूरे भारत में भगवान ब्रह्मा यहां पर वास करतेहैं। कहते हैं इस स्थान पर भगवान ब्रह्मा ने अपने
पौत्रों के उद्धार के लिए सभी देवी- देवताओं के
साथ आहुतियां डाली थी।मंदिर के साथ ही सतलुज नदी बहती है, जो पुराने
समय में ब्रह्म गंगा के नाम से प्रसिद्ध थी । इसी
नदी के मुहाने पर मंदिर के साथ एक कुंड है जिसे
ब्रह्म-कुंड कहते हैं । ऐसा माना जाता है कि इस कुंड
में स्नान करके सच्चे मन से ब्रह्मा जी से जो भी
मन्नत मांगों वो जरूर पूरी होती है और पाप धुल
जाते हैं। विशेष रूप से बैसाखी के दिन स्नान करना
बेहद शुभ माना जाता है, कहते हैं की बैसाखी के
दिन इस स्थान पर भगवान् ब्रह्मा जी श्रद्धालुओं पर
विशेष कृपा करते हैं। भक्त जन यहां की खूबसूरती का
आनंद लेने के साथ-साथ भगवान ब्रह्मा को भी
प्रसन्न करने का पूरा प्रयास करते हैं ।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर
भगवान ब्रह्मा जी के पुत्र मुनि वशिष्ठ ने हजारों
वर्ष तक तपस्या के पश्चात सौ पुत्रों की उत्पति
की थी, लेकिन उस काल के राजा विश्वामित्र
मुनि वशिष्ठ के प्रति द्वेष भाव रखते थे। ऐसी
मान्यता है कि एक बार मुनि वशिष्ठ और राजा
विश्वामित्र में ब्रह्मज्ञान को लेकर वाद-विवाद
हो गया ,इसी वाद-विवाद में राजा ने क्रोध में
आकर मुनि वशिष्ठ के एक पुत्र का वध कर दिया ,
मगर मुनि वशिष्ठ शांत रहे।
दूसरे दिन फिर राजा विश्वामित्र आ गए मगर फिर
भी मुनि वशिष्ठ ने साधु-वाद न छोड़ा और राजा
का और भी अधिक सम्मान किया लेकिन द्वेष
भावना से ग्रस्त राजा विश्वामित्र ने स्वयं को
अपमानित महसूस करते हुए मुनि वशिष्ठ के दूसरे पुत्र
का भी वध कर दिया। इसी प्रकार से राजा
विश्वामित्र ने यही क्रम जारी रखा और मुनि
वशिष्ठ के सभी सौ पुत्रों का एक-एक करके वध कर
दिया।
इसके बाद भी राजा विश्वामित्र का गुरूर नहीं
टूटा तब राजा ने मुनि वशिष्ठ पर प्रहार करने के
लिए जैसे ही हाथ उठाया तो मुनि वशिष्ठ ने अपने
तेज़ से राजा की बांह को इतना स्तंभित कर दिया
कि राजा की बांह टस से मस नहीं हुई। आखिरकार
राजा को अपनी गलती का अनुभव हुआ और उसने
लज्जित हो कर मुनि वशिष्ठ से क्षमा – याचना
मांगी और ब्रह्मज्ञान को सबसे बड़ा ज्ञानी
माना।