देवता
अंकोरवाट के मन्दिर में चित्रित समुद्र मन्थन का दृश्य, जिसमें देवता और दैत्य बासुकी नाग को रस्सी बनाकर मन्दराचल की मथनी से समुद्र मथ रहे हैं।
देवता, दिव् धातु, जिसका अर्थ प्रकाशमान होना है, से निकलता है। अर्थ है कोई भी परालौकिक शक्ति का पात्र, जो अमर और पराप्राकृतिक है और इसलिये पूजनीय है। देवता अथवा देव इस तरह के पुरुषों के लिये प्रयुक्त होता है और देवी इस तरह की स्त्रियों के लिये। हिन्दू धर्म में देवताओं को या तो परमेश्वर (ब्रह्म) का लौकिक रूप माना जाता है, या तो उन्हें ईश्वर का सगुण रूप माना जाता है।
बृहदारण्य उपनिषद में एक बहुत सुन्दर संवाद है जिसमें यह प्रश्न है कि कितने देव हैं। उत्तर यह है कि वास्तव में केवल एक है जिसके कई रूप हैं। पहला उत्तर है ३३ करोड़; और पूछने पर ३३३९; और पूछने पर ३३; और पूछने पर ३ और अन्त में डेढ और फिर केवल एक।
वेद मन्त्रों के विभिन्न देवता है। प्रत्येक मन्त्र का ऋषि, कीलक और देवता होता है।
देवताओं का वर्गीकरण संपादित करें
देवताओं का वर्गीकरण कई प्रकार से हुआ है, इनमे चार प्रकार मुख्य है:-
पहला स्थान क्रम से
दूसरा परिवार क्रम से
तीसरा वर्ग क्रम से
चौथे समूह क्रम से
स्थान क्रम से वर्णित देवता — द्युस्थानीय यानी ऊपरी आकाश में निवास करने वाले देवता, मध्यस्थानीय यानी अन्तरिक्ष में निवास करने वाले देवता, और तीसरे पृथ्वीस्थानीय यानी पृथ्वी पर रहने वाले देवता माने जाते हैं।
परिवार क्रम से वर्णित देवता — इन देवताओं में आदित्य, वसु, रुद्र आदि को गिना जाता है।
वर्ग क्रम से वर्णित देवता — इन देवताओं में इन्द्रावरुण, मित्रावरुण आदि देवता आते हैं।
समूह क्रम से वर्णित देवता — इन देवताओं में सर्व देवा आदि की गिनती की जाती है।
ऋग्वेद में देवताओं का स्थान संपादित करें
ऋग्वेद के सूक्तों में देवताओं की स्तुतियों से देवताओं की पहचान की जाती है, इनमें देवताओं के नाम अग्नि, वायु, इन्द्र, वरुण, मित्रावरुण, अश्विनीकुमार, विश्वदेवा, सरस्वती, ऋतु, मरुत, त्वष्टा, ब्रहम्णस्पति, सोम, दक्षिणा इन्द्राणी, वरुनानी, द्यौ, पृथ्वी, पूषा आदि को पहचाना गया है, और इनकी स्तुतियों का विस्तृत वर्णन मिलता है। जो लोग देवताओं की अनेकता को नही मानते है, वे सब नामों का अर्थ परब्रह्म परमात्मा वाचक लगाते है, और जो अलग अलग मानते हैं वे भी परमात्मात्मक रूप में इनको मानते है। भारतीय गाथाओम और पुराणों में इन देवताओं का मानवीकरण अथवा पुरुषीकरण हुआ है, फ़िर इनकी मूर्तियाँ बनने लगी, फ़िर इनके सम्प्रदाय बनने लगे, और अलग अलग पूजा पाठ होने लगे देखें (हिन्दू धर्मशास्त्र-देवी देवता), सबसे पहले जिन देवताओं का वर्गीकरण हुआ उनमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव का उदय हुआ, इसके बाद में लगातार इनकी संख्या में वृद्धि होती चली गयी, निरुक्तकार यास्क के अनुसार,” देवताऒ की उत्पत्ति आत्मा से ही मानी गयी है”, देवताओं के सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है, कि “तिस्त्रो देवता”.अर्थात देवता तीन है, किन्तु यह प्रधान देवता है, जिनके प्रति सृष्टि का निर्माण, इसका पालन और इसका संहार किया जाना माना जाता है। महाभारत के (शांति पर्व) में इनका वर्णनक्रम इस प्रकार से किया गया है:-
आदित्या: क्षत्रियास्तेषां विशस्च मरुतस्तथा, अश्विनौ तु स्मृतौ शूद्रौ तपस्युग्रे समास्थितौ, स्मृतास्त्वन्गिरसौ देवा ब्राहमणा इति निश्चय:, इत्येतत सर्व देवानां चातुर्वर्नेयं प्रकीर्तितम
आदित्यगण क्षत्रिय देवता, मरुदगण वैश्य देवता, अश्विनी गण शूद्र देवता, और अंगिरस ब्राहमण देवता माने गए हैं। शतपथ ब्राह्मण में भी इसी प्रकार से देवताओं को माना गया है।
शुद्ध बहुईश्वरवादी धर्मों में देवताओं को पूरी तरह स्वतन्त्र माना जाता है।
वेद परम्परा के प्रमुख देवता संपादित करें
चित्र:श्री गणेश मंदिर, झाँसी.JPG
श्री गणेश मंदिर, झाँसी
* गणेश (प्रथम पूज्य)
लक्ष्मी
विष्णु
शंकर
कृष्ण
सरस्वती
दुर्गा
इन्द्र
सूर्य
हनुमान
ब्रह्मा
राम
वायु देवता
जल देवता
अग्नि देवता
शनि देवता
पार्वती
कार्तिकेय
राम
शेषनाग
कुबेर
धन्वंतरि
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